अमेरिका में रहने वाले भारतीय अपने साथ भारतीय खानपान की चीजें और आदतें भी ले गए हैं। उन्हीं चीजों में एक है पान। हिंदुस्तानी कहीं जाएं और पान न खाएं, ऐसा कैसे हो सकता है। वहां इसे खूब चाव से खाया जा रहा है। अमेरिका में कई जगहों पर पान एक डॉलर में मिलता है। इसे आम तौर पर रात के भोजन के बाद खाया जाता है। कुछ लोगों को मीठा पान पसंद है, जिसमें मीठी रंग-बिरंगी सौंफ और गुलाब की पंखुड़ियां होती हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि भारतीय पान खाकर इधर-उधर पीक फेंकने की आदत भी छोड़ नहीं पाए हैं। इससे दूसरे लोग परेशान हैं। पिछले दिनों यह बात अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी आ गई। बहरहाल अमेरिका में पान की खुशबू फैलने की खबर ने भारत में इसे फिर से चर्चा में ला दिया है।
पान महज एक पत्ता भर नहीं है। हिंदू मान्यता के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय ही इसकी उत्पत्ति हुई थी। शास्त्रों में इसका वर्णन है। अमृत मंथन के समय आयुर्वेदज्ञ धन्वंतरि के कलश में जीवन देने वाली औषधियों के साथ पान का भी आगमन हुआ। यह भोजन को पाचन शक्ति प्रदान करता है। पान माउथफ्रेशनर तो है ही साथ ही ऐंटि-बायोटिक भी। यह कैल्शियम की मात्रा से भरपूर है। इसमें डाली जाने वाली सामग्री कत्था, चूना, सौंफ, लौंग, गुलकन्द (गुलाब की पत्ती से बनने वाला), मुलहट्ठी, सुपारी, नारियल का चूरा, इलायची, धनिए के बीज- ये सभी हाजमा दुरुस्त रखने में रामबाण का काम करते हैं
हमारे देश में भोजन के बाद पान खिलाने की प्रथा सदियों पहले शुरू हुई और आज भी प्रचलित है। भारत का इतिहास पान के बगैर अधूरा है। मुगल काल में अभिजात तबके में इसका प्रचलन जोरों पर था। बेगम नूरजहां ने अपने होंठों को रंगने के लिए कॉस्मेटिक की तरह इसका इस्तेमाल किया था। मुगल बादशाह अपने मेहमानों को खुश करने के लिए बड़े अदब के साथ भोजन के बाद इसे खिलाते थे। अंग्रेजी हुकूमत के दिनों में भी हिंदू परिवारों में शादी समारोह में लड़की वालों की ओर से सोने की तश्तरी (प्लेट) में लड़के वालों के यहां शगुन के तौर पर पान के बीड़े भिजवाए जाते थे। पान के बीड़े जितने ज्यादा होते सोने की तश्तरी उतनी ही बड़ी होती और पान की तश्तरी से लड़की वालों की हैसियत आंक ली जाती थी। दीपावली पर हिंदू परिवारों में पान लक्ष्मी जी को अर्पित किया जाता है। एक थाल में पान के पत्ते पर धूप और कपूर रखकर भगवान की आरती की जाती है। हिंदी साहित्य और लोक गीतों में भी इसकी झलक मिल जाती है।
क्या कभी आपने चिड़चिड़ा और झगड़ालू पानवाला कहीं देखा है? नहीं न। सदियों से पान वाले मुस्करा कर ही पान बेचते देखे गए हैं। पान सभ्यता और संस्कृति की निशानी तो है ही, यह दोस्ती की भी निशानी है। क्या हिंदू और क्या मुस्लिम, हिंदुस्तान में सभी धर्मों के लोग इसका सेवन करते हैं। एक पान खाने वाला दूसरे पान खाने वाले से नि:संकोच ही दोस्ती कर लेता है।
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